Tuesday, November 25, 2008

श्रीमद् भागवतव्यंजनम यह महाकवि ढुंढिराज शास्त्री काले द्वारा रचित मूल संस्क़ृत ग्रंथ श्रीमद् भागवतव्यंजनम का हिंदी पद्यानुवाद है । यह उन्ही के प्रपौत्र (स्व.)श्री अनिल काले द्वारा रचित है । श्री कालेने अपनी लंबी अस्वस्थता के होते हुए भी केवल इच्छाशक्ती के बल पर इसे पूरा किया और इसे प्रकाशित भी किया । उनकी इच्छा थी कि यह मौलिक संस्कृत ग्रंथ जन जन तक पहुँचे । श्री काले का यह अनुवाद किसी छन्द का आश्रय नही लेता अपितु संगीत के स्वर, लय और पद्धति काअनुसरण कर रुचिकर एवं कर्ण मधुर हो उठा है ।

श्री ढुण्ढिराज कृत भागवत व्यंजनम्
प्रथम उल्लास

अम्बा हासेतिशुक्लान्दशनवसनयोर्लोहिता केशपाशे
कृष्णां वन्दे कुलेशां प्रकृति विकृतिभि: सप्तभि: श्रृंगदम्भात्
राजन्तं या प्रपंचं मुनिशिखरमधिष्ठाय शैलचकास्ति
ब्रम्हाण्डाखण्डमूलप्रकृतिर विकृतिश्चेतनालिंङ्गिताङ्गि ।

अंबा के मुख पर सुन्दर स्मित
प्रतिपश्चंद्र किरण सा झलके
अघ नाशार्थ दशन और वसन
रक्तिम अरुणिम रिपु रुधिर से ।।

केशपाश कोमल घन तमसा
कुलदेवी स्कंध पर सुशोभित
त्रिगुणात्मके हे जगदम्बे तू
अभिवादन यह कर ले स्वीकृत ।।

कारण मूल इस अखिल जगत का
प्रकृति-विकृति स्वरूपिणी शक्ती
लिंग रूप धारण करती जो
चिद्स्वरूप अम्बा जगदात्री ।।

सप्तमहत कारण प्रतीक से
सप्तश्रृंग शिखरों की शोभा
द्विगुणित करती तप पूत यह
मुनि-ऋषि वृंद बीच श्री अंबा ।।

अनिल काले
जबलपूर