Sunday, March 29, 2009

पुरैकरङ्गेश्वनटादरेण सामाजिकान्मोदयितान्पुरसथान्
तयोर्विवाहोत्सवनाचकस्य कंसः किSलाशोभत सूत्रधारः
मथुरापुरी रंगमंच मंदिर,
में विवाह का उत्सव सुंदर ।
अश्व सजीले थिरक रहे हैं,
पुरस्थ जन उत्सव दर्शक है ।
वसुदेव इस नाटक के नायक
देवकी साक्षात नायिका मानक
इस विवाह उत्सव नाटक का
सूत्रधार बन कंस सुशोभित
आज मथुरा नगरी में देवकी वसुदेव के विवाह का उत्सव है । कवि कह रहे हैं कि इस नाटक की रंगभूमि
सुंदर सजी हुई मथुरा नगरी है । नाटक के नायक हैं वसुदेव और नायिका का मानो मानक ऐसी देवकी हमारी नायिका है और कंस हैं इस नाटक के सूत्रधार ।

Saturday, March 14, 2009

पाणिं गाढमपीपिडत्सुविधिना तस्या:स कंसस्वसु-
र्यद्वा काञ्चनरत्नयौतक युतां जग्राह युध्दार्भटीम् ।
दो बार मुझे है त्यागा तुमने अनघे,
स बार कहीं तुम फिर से त्याग न देना ।
पूर्व के जन्म की हो तुम सुतपा अदिति,
काश्यप सा वसुदेव वृष्णी इस जनम का ।
सूचित ऐसा करके वसुदेव ने मानो
कंस भगिनी का विधिवत् पाणिग्रहण किया था ।
अथवा काञ्चन मणि रत्नों से सालंकृत
युध्दरूप ऐसे कन्या का वरण किया था ।

Saturday, March 7, 2009

अस्ति श्री मधुरापुरी मधुरिपो सांनिध्यभाग सर्वदा-
वैकुंठस्य नवावतार इव या वासो यदुक्ष्माभृताम् ।
तस्यां यो वसुदेवइत्यभिहितो या देवकी ती प्रथां
प्राप्ता वृष्णीकुलोद्भवौ न्यवसतां कनयाकुमारश्च तौ ।

सर्वदा मधुदैत्य-अरि श्री कृष्ण का सानिध्य है,
वैकुण्ठ के नूतन स्वरूप शोभती ये मथुरापुरी है ।
नृपों के यदुवंश की जो ऐतिहासिक राजधानी,
निवसते वहाँ वृष्णिकुल उत्पन्न वसुदेव देवकी हैं ।


यह है मथुरा नगरी जहाँ मधु-राक्षस के संहारी श्री कृष्ण का
सतत सानिध्य है, साक्षात वैकुणठपुरी जैसी ये नगरी ऐतिहासिक है
जहाँ वसुदेव और देवकी का निवास है ।

Thursday, March 5, 2009

शुकमुखादिह भागवतामृतं विगलितं शुभदैव-वशान्महत्
समनुलक्ष्यबुधान्यगदन्त्विदं त्यज सुधे वसुधे भज धन्यताम् ।
शुभ दैव-वश भागवत फल रस,
शुकमुख से अव्य विगलित सा
बुध देव कहें तुम त्यजो सुधा
धन्यता भजो धन्य है धरा ।
तो हे रसिक जन आप इस भागवत रस का पान कर धन्य होईये
जो तोते की चोंच से आहत किसी पक्वफल से गिरते हए रस धारा
के समान आपको प्राप्त है ।

अनिल काले
जबलपूर