एत्त चत्वरवितर्दीमर्थिनो लब्धमर्दित कपर्दिनो ।
यस्य तत्र् पतितां कपर्दिकां गृण्हतोSनुकृतिरपि शौरि ।
घर आंगन पूजा गृह में बरसों तक शंकर अर्चन कर
कृष्णजन्म पूजा प्रसाद सी कुबेर निधि अर्जित कर यदुवर
लघुता ही धारण करते हैं श्रीकृष्ण नंद को अर्पित कर
महत्त खुद की खो कर कपर्दिकावत् कन्या घर ले आये हैं ।
बरसों तक वसुदेव ने शंकर की आराधना कर के जो कुबेर के निधिसा फल
कृष्ण के रूप में पाया उसको उदार ह्रदय से नंद महाराज को अर्पित कर दिया
और स्वय् कन्या को लेकर वापिस लौट आये
।