अहह बत दुरात्मप्रेषिता द्राक् शिशूना
मसुविदलनकामा पूतना नूतनानाम् ।।
नरकरिपुकरैष्यन्मृत्युतः प्रागपि स्वां-
त्रिदशवरवधूयन्त्यभ्ययान्नन्दगोष्ठम् ।।
काम प्राणहारक शिशु के रक्षक स्वप्राण के
मनोकामना मायाविनि की होगी परिपूर्ण शीघ्र कैसे।
आचरण देवांगना सा केवल है इस कारण से,
शीघ्र है स्वर्गाधिरोहण नरकासुरारि कर मृत्यु से,
स्तन्य पिला आनन्दित दैत्या का अभिनन्दन है ब्रज में ।
राक्षसी पूतना का काम कंस के प्राणहारक शिशु कृष्ण के प्राण
हरना है ।
इस मायाविनि की ये इच्छा कैसे पूर्ण होगी
। इसका देवांगना सा आचरण
केवल इस कारण से है क्यूं कि शीघ्र ही
नरकासुर के शत्रु कृष्ण द्वारा इसकी मृत्यु के बाद यह स्वर्ग जायेगी । कृष्ण के
हाथों जिसकी मृत्यु हो उसे तो स्वर्ग की प्रप्ति होनी ही है । अपना दूध कृष्ण को
पिला कर आनंदित इस राक्षसी का इसी से ब्रज में स्वागत है ।