Sunday, July 28, 2013

अहह बत दुरात्मप्रेषिता द्राक् शिशूना
मसुविदलनकामा पूतना नूतनानाम् ।।
नरकरिपुकरैष्यन्मृत्युतः प्रागपि स्वां-
त्रिदशवरवधूयन्त्यभ्ययान्नन्दगोष्ठम् ।।


काम प्राणहारक शिशु के रक्षक स्वप्राण के
मनोकामना मायाविनि की होगी परिपूर्ण शीघ्र कैसे।
आचरण देवांगना सा केवल है इस कारण से,
शीघ्र है स्वर्गाधिरोहण नरकासुरारि कर मृत्यु से,
स्तन्य पिला आनन्दित दैत्या का अभिनन्दन है ब्रज में ।

राक्षसी पूतना का काम कंस के प्राणहारक शिशु कृष्ण के प्राण हरना है
इस मायाविनि की ये इच्छा कैसे पूर्ण होगी । इसका देवांगना सा आचरण
केवल इस कारण से है क्यूं कि शीघ्र ही नरकासुर के शत्रु कृष्ण द्वारा इसकी मृत्यु के बाद यह स्वर्ग जायेगी । कृष्ण के हाथों जिसकी मृत्यु हो उसे तो स्वर्ग की प्रप्ति होनी ही है । अपना दूध कृष्ण को पिला कर आनंदित इस राक्षसी का इसी से ब्रज में स्वागत है ।

Sunday, July 21, 2013

स्वर्लोकानंदमूर्ध्नः पदमुपरि ददद्भोदोजराजे करं च
ज्यायोमित्रस्य शोरेः श्रुतिमपिचशिरः सद्वचस्यांघ्रियुग्मे ।
नन्दोदृष्टिंट धर्मे ह्ददयमपि सुतेSध्यूढसर्वांगदाना-
वेशोपि क्वापि नादादनभिमुखतयेव्त्मनः पृष्ठमेकम् ।।

स्वर्गसुखानन्द पर पैर दियो नन्द देव
हाथ दियो भोजराज कर ही चुकाने को ।
कान दियो मित्र वसुदेव बात सुनवे को
सिर दियो पावन चरण शोरिपूज्य को ।

धर्म राखिबै के काज आंख दियो ब्रजपति
बेटा भये की खुशि में हिरदय न्योछावर सों ।
नन्दानन्दा वेश मे ही सब तन वा-यो पर ,
पीठ न दिखाई सुत जनम उत्सव को ।


कृष्ण की प्राप्ति से नन्द के पांव स्वर्ग पर पड जायें इसीसे  प्रभु ने उन्हे
पांव दिये हैं । हाथ भोजराज को कर देने के लिये तथा कान अपने मित्र
वसुदेव की बात सुनने के लिये और सिर कृष्ण के चरणों में झुकाने के लिये है ।
धर्म की रक्षा करने के लिये आंखें मिली हैं और दिल  पुत्र कृष्णजन्म की खुशी में उन पर न्योछावर करने को मिला है । इस नंद में अपना सब तन (मन) वार कर भी पुत्र जन्म के उत्सव में उत्साहित हैं ।


Friday, July 5, 2013

यानैषीद्बलकेशवौ व्रजमहो जीवेश्वरौ प्राक्तन-



यानैषीद्बलकेशवौ व्रजमहो जीवेश्वरौ प्राक्तन-
स्थानाद्देहमिवाचिराद्व्रजपतिः संमोचितः शोकतः
बन्धेशूरसुतोSर्पितोपि च यथा विद्येत्यविद्येत्युभे
 बिभ्रत्येव तनू स्फुटं जयति सा माया यशोदात्मजा ।


ये रामकृष्ण, जीव औ शिव से ब्रज को देहरूप धर आते
प्राक्तन वश अहो आश्चर्यम् माया में भी विमुक्त हैं ।
विद्या- विद्या  माया सी तनु दोनों की प्रत्यक्ष लगती है
ब्रजपति को कर शोक विमोचित शौरि बांधती माया विजयी ।

ये कृष्ण जीव और शिव का मेल कर के ब्रज में देह रूप धारण कर के आते
प्राक्तनवश माया में हो कर भी मुक्त हैं । दोनों का शरीर विद्या और अविद्य़ा सा लगता है ।
नंद को कृष्ण प्राप्ति का आनंद दे कर और कन्या जन्म के शोक से मुक्त कर माया वसुदेव को बंधन में बांधती है ।