कालिन्दि पुलिने चरन्वदनजैर्वातै: सुवेणोर्नखे:
छिद्राणां परिचालनैर्व्रजसखीचेतांसि संचालयन
यान्तीनां रमणेषु मोहनिचयं संवर्धन्केशवो
ढुण्ढे: पण्डितमण्डनस्य विपदं विद्रावयन रक्षतु
कालिन्दी के तट पर विचरण,
भरे वंशि में अमिय पवन
अंगुलि करे छिद्र संचालऩ
कारण व्रज बाला चित चालन ।
वेणुनाद कर्षित ललना पति
मन, में हो निद्रा संवर्धन
वो केशव करें ढुण्ढि पण्डितवर
का विपत्तियों से रक्षण ।
Saturday, January 31, 2009
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7 comments:
आदरणीया,
बहुत सरल हृदयग्राही |
और काव्यानुवाद की प्रतीक्षा रहेगी, आभार
सादर,
विनय के जोशी
आशा जोगेलकर जी .....बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।बधाई।
श्री अनिल जगन्नाथ काले द्वारा अपने दादाजी की रचनाओं का जो काव्यानुवाद किया, उसे आपने अपने ब्लाग के जरिए हम तक पहुंचाकर हमें लाभांवित किया है। इसके लिए आपका साधुवाद।
सादर,
श्याम बाबू शर्मा
http://shyamgkp.blog.co.in
http://shyamgkp.blogspot.com
http://shyamgkp.rediffiland.com
E mail- shyam_gkp@rediffmail.com
Badhia pryas shuru kiya hai aapne.
Pls remove unnecessary word verification.
(gandhivichar.blogspot.com)
पाठकों के मध्य आपका यह ज्ञान बांटने का कार्य अत्यंत प्रशंसापूर्ण है। यदि आप अत्यंत सरल शब्दों में इसकी विस्तृत व्याख्या भी करें तो पाठकों के लिए यह ओर भी रूचिकर होगा।
आपका आभार । विवरण देने की कोशिश करूंगी ।
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