Friday, February 12, 2010

आत्माध्युपास्तिनिभृताहितभूरिवीर्य्या
संत्याजितोद्भवदपत्यफला निकामम् ।
भार्यैव शोकविकलस्ययदूत्तमस्य,
सत्कर्मपध्दथिरिवाकृत चित्तशुध्दिम् ।।

सत्कर्म पध्दति मार्ग का गन्तव्य अंतिम ब्रह्म है ,
इस पध्दति के अनुसरण से प्रछन्न तेजस लभ्य है ।
साफल्य दुर्लभ प्राप्य किन्तु जनित स्वर-सुख त्याग से,
वसुदेव को स्त्री लाभ तद्वत् सुत सुखेच्छा त्याग से ।
ब्रह्मकर्म उपासना को करे नित जो नियम पूर्वक
वसुदेव यदुवर वो बने प्रछन्न तेजोबल प्रमुख ।