Tuesday, March 12, 2013


कामक्रोधादिवक्र कचममहादंष्ट्रयादः प्रचार-
व्यालोलद्भ्रान्ति च क्रोध्भटमपि नचिरात्स्वस्तिसंसारवार्धिम् ।
वेशन्ताल्पम् विधत्तेदधतमुत ह्रदोभ्यन्तरे यं निगूढं
सौरि शौरिंकथं तं बहिरपि च ततः संवहन्तं रुणध्दु ।।



करालं तीक्ष्ण वृहद दन्त जल जन्तु सम विचरण,
भक्त ह्रदय जलधि में काम क्रोध नक्र भ्रमण
विनायास संचारित भ्रान्ति चक्र हेतु हनन,
करें रक्षण भक्तों का ईश गुप्त दृढ्वासन
यदुवर जो करें गमन, शिरोधार्य कर भगवन्
सौरि क्या करे रोधित उस शौरि का मार्गक्रमण ।

वसुदेव बिना किसी बाधा के विचलित हुए, तेज बहती यमुना में आगे बढ रहे हैं .
भक्त के ह्रदय में जिस प्रकार कामक्रोध रूपी मगर विचरते हैं वैसे ही विक्राल जन्तु
इस यमुना जल में फुंफकार रहे हैं पर जिसके सिर पर स्वय भगवान विराजमान हैं ऐसे
शूर वीर यदुवर वसुदेव का कोई कैसे मार्ग रोधित कर सकता है ।