आत्माध्युपास्तिनिभृताहितभूरिवीर्य्या
संत्याजितोद्भवदपत्यफला निकामम् ।
भार्यैव शोकविकलस्ययदूत्तमस्य,
सत्कर्मपध्दथिरिवाकृत चित्तशुध्दिम् ।।
सत्कर्म पध्दति मार्ग का गन्तव्य अंतिम ब्रह्म है ,
इस पध्दति के अनुसरण से प्रछन्न तेजस लभ्य है ।
साफल्य दुर्लभ प्राप्य किन्तु जनित स्वर-सुख त्याग से,
वसुदेव को स्त्री लाभ तद्वत् सुत सुखेच्छा त्याग से ।
ब्रह्मकर्म उपासना को करे नित जो नियम पूर्वक
वसुदेव यदुवर वो बने प्रछन्न तेजोबल प्रमुख ।
Friday, February 12, 2010
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3 comments:
ye to bahut sundar post hai yahan to aadhayatma se judi baate hai ,jo jeevan ka marg darshan karati hai .
: श्रीमद्भागवत , kabhi Padhi nahi, par aaj yahan kuchh ansh seekhne ko mila.
aabhar.
अरे वाह! बहुत अच्छा... आपने मेरी एक रचना त्रासदी पर टिप्पणी की थी उसके बाद चुप हो गयीं? विश्वास दिलाता हूँ कि आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करके निराश नहीं होंगी।
आशा जी मेरे ब्लॉग को फॉलो करिए ना! मुझे गर्व होगा
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