हन्तो दयिष्यति हतिस्तव नष्टबुध्दे विस्पष्टमष्टमसुतादिति कष्टमस्याः
इत्युग्रसेनजनुषः सुरवर्त्मवाणी बाणी बभूव ह्रदयांतर मर्मभेत्री।।
उग्रसेन के सुत ह्रदय के मर्म का भेदन करे
बाण सदृश आकाश वाणी से समस्त जन डरे
देवकी के आठवे सुत रूप अन्त तव उदित होगा
हन्त कष्टम् हे नष्टबुध्दी काल को वरना पडेगा ।
उस आकाश वाणी को सुन कर सारे पुरजन भयभीत हो गये और कंस का ह्रदय विदीर्ण होगया ।
हे दुष्टबुध्दी कंस तेरा काल, तेरा अंत, देवकी के आठवे पुत्र (संतान ) के रूप में जन्म लेगा ।
Monday, April 6, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)