हन्तो दयिष्यति हतिस्तव नष्टबुध्दे विस्पष्टमष्टमसुतादिति कष्टमस्याः
इत्युग्रसेनजनुषः सुरवर्त्मवाणी बाणी बभूव ह्रदयांतर मर्मभेत्री।।
उग्रसेन के सुत ह्रदय के मर्म का भेदन करे
बाण सदृश आकाश वाणी से समस्त जन डरे
देवकी के आठवे सुत रूप अन्त तव उदित होगा
हन्त कष्टम् हे नष्टबुध्दी काल को वरना पडेगा ।
उस आकाश वाणी को सुन कर सारे पुरजन भयभीत हो गये और कंस का ह्रदय विदीर्ण होगया ।
हे दुष्टबुध्दी कंस तेरा काल, तेरा अंत, देवकी के आठवे पुत्र (संतान ) के रूप में जन्म लेगा ।
Monday, April 6, 2009
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5 comments:
Aabhaar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक नितांत तकनीकी माध्यम का इतना उम्दा प्रयोग करने के लिए बधाई.... कौन कहता है कि दूर जाते ही जड़ों से कट जाते हैं.....आपके काम को देखकर तो लगता है कि कहीं भी रहे, जड़ों के साथ रहा जा सकता है....एक बार फिर से बधाई और अपनी परंपराओं को एक विदेशी माध्यम के साथ नए आयाम देने के लिए धन्यवाद
कृपया इसे आगे बढाएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुन्दर प्रयास, आभार ,बधाई ।
प्रणाम !
आपका काव्य के प्रति रुझान देखकर संतोष हुआ!
मेरे कुछ विचार- कवी कभी आलसी नहीं होता
अपितु प्रतिभावान होता है,जो गागर में सागर
भर देता है! मराठी में भी कहते हैं-
"जे न देखे रवी, ते देखे कवी "
मैं मराठी में काव्यरचना करता हूं
श्री सुरेश जी को प्रणाम !
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