भूभारभूत भवभूरियानकेन्द्रप्रत्यर्थिकैतवमहीपतिवाहिनीभिः
संप्लावितान्सकलसज्जनसाधुमार्गानुध्दर्तुमैहतविभुर्विधिनार्थितः सन्
जगत को भयानक भारभूत इन्द्रारि नृपों का हनन करें,
सन्मार्ग प्रवृत्त सज्जन को भी सैन्यत्रास भय विमुक्त करें ।
ब्रम्हा द्वारासंप्रार्थित प्रभु जन मन में सुख समृध्दि भरें,
कवि कहते न कारन प्रभुजी पृथ्वी पर अवतार धरें ।
जगत को संताप देने वाले इन्द्र के शत्रु राजाओं का हनन कर प्रभु संत जनों को त्रास और भय से मुक्त करते हैं । कवि कहते हैं कि ब्रम्हाजी के प्रार्थना करने पर ही प्रभु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं ।
Sunday, November 14, 2010
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7 comments:
सुन्दर भावपूर्ण अनुवाद. परन्तु इंद्र कई बार खलनायक सा लगता है.
सुन्दर प्रसंग -आभार।
सुन्दर अभिव्यक्ति... शुभदिवस
सुन्दर अभिव्यक्ति... शुभदिवस
बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिया आभार
अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका
सुंदर ...परन्तु मुझे यहाँ इंद्र का "..भवभूरियानकेन्द्रप्रत्यर्थिकैतव.."...में इंद्र का, या इन्द्रारि का कोई अर्थ समझ में नहीं आया.. ---इसी प्रकार ..."जगत को संताप देने वाले इन्द्र के शत्रु राजाओं का हनन.."....यहाँ इंद्र स्वयं खलनायक लगता है...इस भावार्थ का वाक्यांश आज तक कभी सुना पढ़ा नही गया...
---सही अर्थात्मक काव्यार्थ व अर्थ नहीं किया गया है...
वाह! बहुत सुन्दर.
धन्य हुए आपकी पावन प्रस्तुति से.
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