आद्यन्तयोर्देवपदाङ्किताभ्यां व्यलोकि मध्योपि तथा पितृभ्याम्
यत्तादृशां पुण्यविशेष भाजाम् देवः कुतोप्युज्झति नो सनीडम् ।।
आद्यंत देव पदांकित दोनो
पितृमध्य स्वयं स्थापित मानो
स्थान ,समय कोई हो,पुण्यात्मा
सन्निकट सदा प्रभु को जानो ।।
देव तथा पितरों के मध्य स्वयं को स्थापित मान कर,
पुण्यात्मा के रूप में ईश्वर को सदा अपने निकट अनुभव करो ।
Saturday, April 7, 2012
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3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
अमृत वचन का पान कर
तृप्त हुआ मन.
आभार आशा जी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार
http://aadhyatmikyatra.blogspot.in/
स्तुत्य प्रयास है आपका यह ब्लॉग . लोक कल्याणकारी vachanaamrit .aabhaar .
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