यानैषीद्बलकेशवौ व्रजमहो
जीवेश्वरौ प्राक्तन-
स्थानाद्देहमिवाचिराद्व्रजपतिः
संमोचितः शोकतः
बन्धेशूरसुतोSर्पितोपि च यथा
विद्येत्यविद्येत्युभे
बिभ्रत्येव तनू स्फुटं जयति सा माया यशोदात्मजा ।
ये रामकृष्ण, जीव औ शिव से ब्रज को
देहरूप धर आते
प्राक्तन वश अहो आश्चर्यम्
माया में भी विमुक्त हैं ।
विद्या- विद्या माया सी
तनु दोनों की प्रत्यक्ष लगती है
ब्रजपति को कर शोक विमोचित
शौरि बांधती माया विजयी ।
ये कृष्ण जीव और शिव का मेल
कर के ब्रज में देह रूप धारण कर के आते
प्राक्तनवश माया में हो कर
भी मुक्त हैं । दोनों का शरीर विद्या और अविद्य़ा सा लगता है ।
नंद को कृष्ण प्राप्ति का
आनंद दे कर और कन्या जन्म के शोक से मुक्त कर माया वसुदेव को बंधन में बांधती है ।
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नंद को कृष्ण प्राप्ति का आनंद दे कर और कन्या जन्म के शोक से मुक्त कर माया वसुदेव को बंधन में बांधती है ।
सुंदर दृष्टांत, शुभकामनाएं.
रामराम.
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