अहो महीयस्तनुदाहनक्षमं क्व वेन्धनं स्यादिति संभ्रमाकुलाः
द्रुमच्छिदं वीक्स्य तु तां न गोदुहो विषाद कालेSपि
मुदं व्यमुक्षत।।
है विचार प्राप्त कहाँ विशाल तनु दाहक्षम इंधन,
गोरक्षक आश्चर्य-चकित से है सम्मुख वृक्षों का ध्वंसन।
जिनका ह्रदय है क्लेशयुक्त ब्रज सम्पति हनन के कारण,
हर्ष से भरे वे गोपाल देख प्रयाप्त दाहनक्षम ईंधन
पूतना के विशाल शरीर को गिरता देख गोपाल सोच रहे हैं कि इस
विशाल काया को जलाने के लिये इंधन कहां से आयेगा ? उसके देह के
साथ गिरते इतने सारे वृक्ष देख कर ब्रज सम्पत्ती के नष्ट होने के दुख हो
रहा है लेकिन साथ ही ईंधन की समस्या सुलझ जाने का हर्ष भी है।
1 comment:
बहुत ही सुंदर दृष्टांत, शुभकामनाएं.
रामराम.
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