सुपर्वतोषाय यथा य़थाक्रमं प्रभुःस खर्वोSपि पुरा स्म
वर्धते
पितृप्रियायाSत्र महालपि स्वयं
लघुर्बभूवेन्दुरिव स्वपूर्वजः
लघुतम वामन रूप से शनैः शनैः विशालता
प्रभु धारण करते
पूर्व समय देवों को संकट विमुक्त आनन्दित
करते
श्रीकृष्ण जन्म से मात-पिता प्रमुदित हो
इस हेतु से
कुल संस्थापक चंद्र के समान विशालता त्यज
बने शिशु से
अपना वामन रूप धीरे धीरे बढा कर प्रभु
विशाल रुप धारण करते हैं और (बलि को पाताल में धकेल कर ) देवों को संकटमुक्त तथा
आनंदित करते हैं । अपने पूर्वज चंद्र के समान ( जो कि सदैव घटता बढता है ) प्रभु वालकृष्ण
के रूप में जन्म लेकर माता पिता को सुख पहुंचाते हैं ।
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