असान्तताभागमुना दधेSयः कृष्णस्वरूपीह तु
सान्तताभाक् ।
मयेति मत्वा निगडो नु शौरेर्युक्तं
विशीर्णो बहुलोहजुष्टः ।।
अविनाशी कृष्ण स्वरूप हैं शिरोधार्य श्री वसुदेव के,
कृष्ण वर्ण श्रृंखला विनाशी हूँ निगडित मैं यदुपद से,
विगलित हुई लोह श्रृंखला इस तर्क वितर्क में,
उचित ही, शौरिपद से टूट गई, गल गल गई न्यून गंड से ।
य़े कृष्ण स्वरूप प्रभु वसुदेव के आराध्य हैं उन्हें इस कृष्ण
वर्ण श्रृंखला का नाश करना है क्यूं कि वे यदुपद से जुडे हैं। इस विवाद में वह
श्रृंखला स्वयंही टूट कर बिखर गई मानो न्यूनगंड से गल गई हो ।
No comments:
Post a Comment