Saturday, January 31, 2009

कालिन्दि पुलिने चरन्वदनजैर्वातै: सुवेणोर्नखे:
छिद्राणां परिचालनैर्व्रजसखीचेतांसि संचालयन
यान्तीनां रमणेषु मोहनिचयं संवर्धन्केशवो
ढुण्ढे: पण्डितमण्डनस्य विपदं विद्रावयन रक्षतु

कालिन्दी के तट पर विचरण,
भरे वंशि में अमिय पवन
अंगुलि करे छिद्र संचालऩ
कारण व्रज बाला चित चालन ।
वेणुनाद कर्षित ललना पति
मन, में हो निद्रा संवर्धन
वो केशव करें ढुण्ढि पण्डितवर
का विपत्तियों से रक्षण ।