भूभारभूत भवभूरियानकेन्द्रप्रत्यर्थिकैतवमहीपतिवाहिनीभिः
संप्लावितान्सकलसज्जनसाधुमार्गानुध्दर्तुमैहतविभुर्विधिनार्थितः सन्
जगत को भयानक भारभूत इन्द्रारि नृपों का हनन करें,
सन्मार्ग प्रवृत्त सज्जन को भी सैन्यत्रास भय विमुक्त करें ।
ब्रम्हा द्वारासंप्रार्थित प्रभु जन मन में सुख समृध्दि भरें,
कवि कहते न कारन प्रभुजी पृथ्वी पर अवतार धरें ।
जगत को संताप देने वाले इन्द्र के शत्रु राजाओं का हनन कर प्रभु संत जनों को त्रास और भय से मुक्त करते हैं । कवि कहते हैं कि ब्रम्हाजी के प्रार्थना करने पर ही प्रभु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं ।
Sunday, November 14, 2010
Wednesday, November 3, 2010
एके न द्वै मातरौ गर्भवत्यौ येनाभूतां नागाधिराजः
मूर्ध्निक्षोणीं सर्षपं मन्यते यां सा तं दध्रे सर्षपीभावयन्ती ।।
इक केवल बलराम के कारण माताएं दो गर्भवती,
शून्य सी जानकर शीर्ष पर धारण करता जो पृथ्वी
शेषावतार नागाधिराज को सर्षप सा मान कर देवकी
विधि विधान मानते हुए स्व- उदर में हैं धारण करतीं ।।
केवल बलराम के कारण दोनों माताएं देवकी और रोहिणी गर्भवती हैं ये उस शेष नाग की लीला है जो पृथ्वी को शून्यवत जान कर सहज शीष पर धारण करते हैं । देवकी इसे विधी का विधान मान कर स्वीकार करती हैं ।
मूर्ध्निक्षोणीं सर्षपं मन्यते यां सा तं दध्रे सर्षपीभावयन्ती ।।
इक केवल बलराम के कारण माताएं दो गर्भवती,
शून्य सी जानकर शीर्ष पर धारण करता जो पृथ्वी
शेषावतार नागाधिराज को सर्षप सा मान कर देवकी
विधि विधान मानते हुए स्व- उदर में हैं धारण करतीं ।।
केवल बलराम के कारण दोनों माताएं देवकी और रोहिणी गर्भवती हैं ये उस शेष नाग की लीला है जो पृथ्वी को शून्यवत जान कर सहज शीष पर धारण करते हैं । देवकी इसे विधी का विधान मान कर स्वीकार करती हैं ।
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