Sunday, March 11, 2012

स्ववंशसंभूतिमिमामपीह प्रागवत्किमु श्रोश्यति दुर्मनीषः।
इत्युग्रचिन्तार्धतनुकृतत्वा दिवोददान्नष्टकलाष्टको ग्लौ ।।

निज अंत रूप श्रीकृष्ण नाशार्थ कंस संकल्पित,
पूर्व के सप्त गर्भो सा अष्टम प्रसव कंस सूचित,
निजवंश कृष्ण संभव को ले है शशांक अति चिंतित,
सप्तपुत्र नाश स्वरूपी सप्तकला खोकर निज की
अष्टम तिथी श्रावण वद्य की, नभ-उदित चंद्र अर्धरात्रि ।।

अपने अंतरूप श्रीकृष्ण के नाश के लिये कंस द्वारा संकल्प किया हुआ,
देवकी के पहले सात गर्भों के समान यह आठवा प्रसव (जिसकी सूचना भी उस कंस को है) जब चांद्रवंशीय कृष्ण जन्म लेने वाले हैं, चंद्र के चिंता का कारण है ।
सात पुत्रों के नाश स्वरूप अपनी सात कलाओं को खोकर
यह चितातुर चंद्र आज कृष्णपक्ष के अष्टमी की आधीरात को आधा रह गया है ।