Saturday, December 26, 2009

साध्वीमुदारां च गुणै प्रसक्ते प्राणव्ययेSपि प्रतिपालनीयाम् ।
कंसा स्वसारं निशितासिनाSपि क्रियामिवच्छेत्तुमसौ प्रयेते ।।

साधुता,उदारता गुण वयस कन्या देवकी के
गुण ये अनुपम, सुकोमल अंगसे रूपसी के ।
योग्य है रक्षण, स्वप्राण तनु उत्सर्ग जिसका
छेदनोद्यत है कंस खड्ग से अङ्ग अंङ्गना का ।

सुकुमार और कोमल अंगो वाली देवकी सुस्वभावी और उदार ह्रदया है। ऐसी गुणवान देवकी, जिसकी प्राणपण से रक्षा की जानी चाहिये दुष्ट कंस उसका अंग भंग करने को उद्युक्त है ।

Monday, December 14, 2009

प्रोज्झित्यात्मानमिध्दापदि पदमपथे स्थापयिष्यन्तमश्वान
सन्मार्गेसबध्ददृष्टीन्त्सजवमपि तिरश्चोनियातोगुणान्स्वान
अप्याकृष्टान्कराभ्यामनुपयत इव प्रग्रहान्प्रास्य हस्त
ग्राहं जग्राहं कंस: सपदि तदलकान्दुर्मतिरदुर्गुणांश्च ।

पशुयोनि जन्मित चपल अश्व वे फिर भी
संकेतानुसरण जनित सहज गुण रूपी ।
सवेग चलते गये मार्ग पर बांधे दृष्टी
गुण कर्षण से अवरुध्द मार्ग कर कंसी ।
हस्त प्रक्षेपण जनित मार्ग-च्युत अश्व
गुण छोड दुमति ने धरे केश-देवकी ।
यद्यपि ये अश्व पशुयोनी में जन्मे हैं पर अपने दृत गति से चलते जाते हैं वे अपना सहज गुण नही छोडते । परंतु कंस ने लगाम कस कर घोडों को अपने मार्ग से अलग कर दिया और उस दुर्मति अपने रथ से उतर कर देवकी के केश अपने मुठ्ठी में कस लिये ।