Saturday, February 25, 2012

पूर्ण ब्रह्माधिवर्षं विधृतगुणमधिश्रावणं चाधिताम्यत्-
पक्षं तत्राधिरोहिण्यधिरजनी तथाध्यष्ट मिस्पष्ट मिष्टम्
दातुं सद्भ्योधिमे दिन्यधिमथुरमधिष्ठाय तेजोधिकारा-
गारं किंचाध्यरिष्टं परमधिशयनं सर्वतः प्रादुरासीत् ।।

तिथी कृष्णपक्ष अष्टमी की, वर्षाऋतु श्रावण मास का,
अंधकार, तम सब हर,
प्रभा प्रसार करते भास्कर,
निर्गुण परब्रह्म सगुण कर,
मनोरथ है पूर्ण सुजन का, पूर्णब्रह्म कृष्ण सुजन्म सा ।।

वर्षाऋतु, श्रावण मास, कृष्णपक्ष, अष्टमी तिथी को रोहिणी नक्षत्र पर
लोगों का मनोरथ पूर्ण करने को पूर्णब्रह्म कृष्ण जी अवतरित हुए हैं ।
ये निर्गुण परब्रह्म सगुण साकार रूप में प्रकट हुए हैं वह भी कंस की
बंदी शाला में । इस अवसर पर मानो सूर्यदेव भी अंधकार को हर कर
अपनी प्रभा प्रसारित कर रहे हैं ।

Monday, February 13, 2012

श्रीमद्भागवतव्यंजनम्

पीताकाचघटीवसंभृतमषी श्रीकृष्णसंधारणात्,
गर्भेकेतकगर्भगौरतनुरप्यन्तर्बहिर्देवकी ।
कृष्णांगी समदृष्यतेह न भयात्कंसस्यसोSपि ध्रुवं,
तत्छायाप्रतिबिम्बनस्य कलनात्कालस्य कालानलः ।

वासंती कांच-पात्र संभृत मषिमय सी ये रूपसी,
केतकी गर्भगौर स्वर्ण-आभा तन्वंगी ये गौर सी ।
सुलक्षणा ये देवकी कृष्णांगी ना पापी कंस भय से
है कालानल कंस काल श्रीकृष्ण प्रतिबिम्ब से ।

वासंती रंग के कांचपात्र में स्याही भरी हो ऐसा शामल लग रहा है तन्वंगी देवकी का रूप जो वास्तव में केतकी के समान गोरी है । कृष्ण को गर्भ में धारण करने के कारण ऐसा प्रतीत होता है, कंस के भय के कारण नही । कृष्ण तो कंस के काल हैं ।