Sunday, November 3, 2013

अतीत्य तत्तत्पदमुच्चदेश भाग्बकीव धूम्यापि तदीय देहजा।
तुतोद गाढं व्यवधामविभ्रतीस्तदेन्द्रचन्द्रादिदृशो भृशोज्वलाः।।

केशव कर प्रदत्त मृत्यु से पूतना करे स्वर्गारोहण,
ऊँचे नभ धूम अभ्र विहरे दैत्या तनु दाहना के कारण।
मुदित चंद्र, इन्द्रादि सुरों के नयनों का अतिशय पीडन,
धूम निमिष में दूरक सा ये सुर आनंद चंद्र विकसन।।

कृष्ण के हाथों मृत्यु मिलने से पूतना स्वर्ग तो जा रही है पर शरीर दाह के कारण
पीडित है। इंद्रादि देव इस पूतना वध से अत्यंत प्रसन्न हैं मानो धूएं के बादल क्षण भर में हट
कर उनका आनंद रूपी चंद्र निकल आया हो।