Tuesday, August 3, 2010

स्वह्रदयगर्भगानपि विजित्य न षट् प्रथमं-
सहजरिपून्स्वसुर्बत शिशुनवधीन्मधुपः ।
यदिदमकर्म वा सुरमुनिः कथमैधयत
क्षितिमथवा परीक्ष्य वपन्ति बुधा उचितम् ।।

स्वह्रदय गर्भसुत से षड्रिपु सहज पुत्र देवकी के
आश्चर्य मुनि ने उकसाये वध को, न वधे ।
अघ उत्पाद परीक्षा कंसाघ क्षितिघ्न पूर्व उत्तम वा
बीज वपन परीक्षण उत्तम विद्वान शिरोमणी का अथवा ।

ये षड्रिपु से देवकी के छह पुत्र जिनका वध करने को मुनि ने कंस को उकसाया
जैसे उसके पाप के चरम सीमा की परीक्षा ले रहे हों या धरती किसी विद्वान की तरह बीज की परीक्षा ले रही हो।

4 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही उत्तम कार्य आप कर रही हें आप ।
हार्दिक शुभकामनायें............

Anonymous said...

भागवत के मूल श्लोक अगर शुद्ध हों तो आनन्द होगा...........

ZEAL said...

sundar jaankaari...aabhaar.

Urmi said...

बहुत बढ़िया जानकारी मिली!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com