Friday, August 9, 2013

परः सहस्त्रासुरवंशभोजी स्तन्येन तस्याः किल कृष्णकालः ।
प्राणाहुतीनां सहपञ्चके न मन्येSमृतोपस्तरणं चकार ।।

भूतकाल कालग्रास कालरूप घनश्याम,
सहस्त्रमित दैत्यों का भोग लगायें गोपाल ।
स्तनपय आचमन करें पंचप्राणाहुति ले,
अमृतोपस्तरण से आशिर्वचन दे सच ये ।
तृप्त हुए विधिवत, कृष्ण पूर्ण सत्कार से,
उसी वंश की राक्षसी पूतना मायाविनि से ।

दुष्टों के लिये काल रूप गोपाल ने भूतकाल में सहस्त्रों दैत्यों को ग्रास बनाया है ।
पूतना का स्तन्यपान करके उसेक पचप्राण हर लेते हैं पर उसे इस उपकार के लिये, इस तृप्ति के लिये पूर्ण सत्कार के साथ आशिर्वाद  भी देते हैं ।






4 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

परम शांति दायक, आभार.

रामराम.

virendra sharma said...

बेहद सुन्दर सशक्त काव्य कथा ,कविता में कथा और कथा में बेहद की सुन्दर कविता। ॐ शान्ति।

virendra sharma said...

सुन्दरम मनोहरं शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।

virendra sharma said...

शुक्रिया संकेत करें आपकी कौन सी ब्लॉग पोस्ट नवीनतम है कौन सा ब्लॉग सक्रीय है। ॐ शान्ति