Wednesday, December 10, 2008

नमो न मोहाधिविनाशिनो गुरो:,पदोपदोत्कृष्टपदं नयेद्यदि
नवेत्ता हित मध्वना कथं, समं स मंङ्क्षु र्स्वजनैर्भवैज्जन:

मोहनाश करने वाले सद् गुरु की कृपा स्मरें
गुरु नमन से बढ कर जग में और नही उपहार बडे
कैसे कोई सक्षम होगा हित अन-हित जानने हेतु,
स्वजनों के साथ गुरु को नित प्रणाम जो न करे
डगमग पद चलने वाले, यदि कोई मुमुक्षु हैं जग मे
हित अहित जानने हेतु वे सद् गुरु का नमन करे

अनिल काळे

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