Saturday, December 26, 2009

साध्वीमुदारां च गुणै प्रसक्ते प्राणव्ययेSपि प्रतिपालनीयाम् ।
कंसा स्वसारं निशितासिनाSपि क्रियामिवच्छेत्तुमसौ प्रयेते ।।

साधुता,उदारता गुण वयस कन्या देवकी के
गुण ये अनुपम, सुकोमल अंगसे रूपसी के ।
योग्य है रक्षण, स्वप्राण तनु उत्सर्ग जिसका
छेदनोद्यत है कंस खड्ग से अङ्ग अंङ्गना का ।

सुकुमार और कोमल अंगो वाली देवकी सुस्वभावी और उदार ह्रदया है। ऐसी गुणवान देवकी, जिसकी प्राणपण से रक्षा की जानी चाहिये दुष्ट कंस उसका अंग भंग करने को उद्युक्त है ।

1 comment:

shyam gupta said...

सुन्दर प्रसन्ग वर्णन.