Sunday, November 14, 2010

भूभारभूत भवभूरियानकेन्द्रप्रत्यर्थिकैतवमहीपतिवाहिनीभिः
संप्लावितान्सकलसज्जनसाधुमार्गानुध्दर्तुमैहतविभुर्विधिनार्थितः सन्

जगत को भयानक भारभूत इन्द्रारि नृपों का हनन करें,
सन्मार्ग प्रवृत्त सज्जन को भी सैन्यत्रास भय विमुक्त करें ।
ब्रम्हा द्वारासंप्रार्थित प्रभु जन मन में सुख समृध्दि भरें,
कवि कहते न कारन प्रभुजी पृथ्वी पर अवतार धरें ।

जगत को संताप देने वाले इन्द्र के शत्रु राजाओं का हनन कर प्रभु संत जनों को त्रास और भय से मुक्त करते हैं । कवि कहते हैं कि ब्रम्हाजी के प्रार्थना करने पर ही प्रभु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं ।

7 comments:

P.N. Subramanian said...

सुन्दर भावपूर्ण अनुवाद. परन्तु इंद्र कई बार खलनायक सा लगता है.

ZEAL said...

सुन्दर प्रसंग -आभार।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सुन्दर अभिव्यक्ति... शुभदिवस

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सुन्दर अभिव्यक्ति... शुभदिवस

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिया आभार

अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका

डा श्याम गुप्त said...

सुंदर ...परन्तु मुझे यहाँ इंद्र का "..भवभूरियानकेन्द्रप्रत्यर्थिकैतव.."...में इंद्र का, या इन्द्रारि का कोई अर्थ समझ में नहीं आया.. ---इसी प्रकार ..."जगत को संताप देने वाले इन्द्र के शत्रु राजाओं का हनन.."....यहाँ इंद्र स्वयं खलनायक लगता है...इस भावार्थ का वाक्यांश आज तक कभी सुना पढ़ा नही गया...

---सही अर्थात्मक काव्यार्थ व अर्थ नहीं किया गया है...

Rakesh Kumar said...

वाह! बहुत सुन्दर.
धन्य हुए आपकी पावन प्रस्तुति से.