Friday, July 5, 2013

यानैषीद्बलकेशवौ व्रजमहो जीवेश्वरौ प्राक्तन-



यानैषीद्बलकेशवौ व्रजमहो जीवेश्वरौ प्राक्तन-
स्थानाद्देहमिवाचिराद्व्रजपतिः संमोचितः शोकतः
बन्धेशूरसुतोSर्पितोपि च यथा विद्येत्यविद्येत्युभे
 बिभ्रत्येव तनू स्फुटं जयति सा माया यशोदात्मजा ।


ये रामकृष्ण, जीव औ शिव से ब्रज को देहरूप धर आते
प्राक्तन वश अहो आश्चर्यम् माया में भी विमुक्त हैं ।
विद्या- विद्या  माया सी तनु दोनों की प्रत्यक्ष लगती है
ब्रजपति को कर शोक विमोचित शौरि बांधती माया विजयी ।

ये कृष्ण जीव और शिव का मेल कर के ब्रज में देह रूप धारण कर के आते
प्राक्तनवश माया में हो कर भी मुक्त हैं । दोनों का शरीर विद्या और अविद्य़ा सा लगता है ।
नंद को कृष्ण प्राप्ति का आनंद दे कर और कन्या जन्म के शोक से मुक्त कर माया वसुदेव को बंधन में बांधती है ।


1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

नंद को कृष्ण प्राप्ति का आनंद दे कर और कन्या जन्म के शोक से मुक्त कर माया वसुदेव को बंधन में बांधती है ।

सुंदर दृष्टांत, शुभकामनाएं.

रामराम.