Sunday, July 21, 2013

स्वर्लोकानंदमूर्ध्नः पदमुपरि ददद्भोदोजराजे करं च
ज्यायोमित्रस्य शोरेः श्रुतिमपिचशिरः सद्वचस्यांघ्रियुग्मे ।
नन्दोदृष्टिंट धर्मे ह्ददयमपि सुतेSध्यूढसर्वांगदाना-
वेशोपि क्वापि नादादनभिमुखतयेव्त्मनः पृष्ठमेकम् ।।

स्वर्गसुखानन्द पर पैर दियो नन्द देव
हाथ दियो भोजराज कर ही चुकाने को ।
कान दियो मित्र वसुदेव बात सुनवे को
सिर दियो पावन चरण शोरिपूज्य को ।

धर्म राखिबै के काज आंख दियो ब्रजपति
बेटा भये की खुशि में हिरदय न्योछावर सों ।
नन्दानन्दा वेश मे ही सब तन वा-यो पर ,
पीठ न दिखाई सुत जनम उत्सव को ।


कृष्ण की प्राप्ति से नन्द के पांव स्वर्ग पर पड जायें इसीसे  प्रभु ने उन्हे
पांव दिये हैं । हाथ भोजराज को कर देने के लिये तथा कान अपने मित्र
वसुदेव की बात सुनने के लिये और सिर कृष्ण के चरणों में झुकाने के लिये है ।
धर्म की रक्षा करने के लिये आंखें मिली हैं और दिल  पुत्र कृष्णजन्म की खुशी में उन पर न्योछावर करने को मिला है । इस नंद में अपना सब तन (मन) वार कर भी पुत्र जन्म के उत्सव में उत्साहित हैं ।


1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

परम शांति दायक आलेख, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.