Thursday, March 5, 2009

शुकमुखादिह भागवतामृतं विगलितं शुभदैव-वशान्महत्
समनुलक्ष्यबुधान्यगदन्त्विदं त्यज सुधे वसुधे भज धन्यताम् ।
शुभ दैव-वश भागवत फल रस,
शुकमुख से अव्य विगलित सा
बुध देव कहें तुम त्यजो सुधा
धन्यता भजो धन्य है धरा ।
तो हे रसिक जन आप इस भागवत रस का पान कर धन्य होईये
जो तोते की चोंच से आहत किसी पक्वफल से गिरते हए रस धारा
के समान आपको प्राप्त है ।

अनिल काले
जबलपूर

1 comment:

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ae wah,,aanand mila..
aanand prapt hua maane ishvariya anubhav..