Saturday, March 14, 2009

पाणिं गाढमपीपिडत्सुविधिना तस्या:स कंसस्वसु-
र्यद्वा काञ्चनरत्नयौतक युतां जग्राह युध्दार्भटीम् ।
दो बार मुझे है त्यागा तुमने अनघे,
स बार कहीं तुम फिर से त्याग न देना ।
पूर्व के जन्म की हो तुम सुतपा अदिति,
काश्यप सा वसुदेव वृष्णी इस जनम का ।
सूचित ऐसा करके वसुदेव ने मानो
कंस भगिनी का विधिवत् पाणिग्रहण किया था ।
अथवा काञ्चन मणि रत्नों से सालंकृत
युध्दरूप ऐसे कन्या का वरण किया था ।

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