Saturday, March 7, 2009

अस्ति श्री मधुरापुरी मधुरिपो सांनिध्यभाग सर्वदा-
वैकुंठस्य नवावतार इव या वासो यदुक्ष्माभृताम् ।
तस्यां यो वसुदेवइत्यभिहितो या देवकी ती प्रथां
प्राप्ता वृष्णीकुलोद्भवौ न्यवसतां कनयाकुमारश्च तौ ।

सर्वदा मधुदैत्य-अरि श्री कृष्ण का सानिध्य है,
वैकुण्ठ के नूतन स्वरूप शोभती ये मथुरापुरी है ।
नृपों के यदुवंश की जो ऐतिहासिक राजधानी,
निवसते वहाँ वृष्णिकुल उत्पन्न वसुदेव देवकी हैं ।


यह है मथुरा नगरी जहाँ मधु-राक्षस के संहारी श्री कृष्ण का
सतत सानिध्य है, साक्षात वैकुणठपुरी जैसी ये नगरी ऐतिहासिक है
जहाँ वसुदेव और देवकी का निवास है ।

2 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

mujhe ummeed hai ki aap iske mukhy anshon ka prakashan avashy karenge aur paathkon ko laabhaanvit hone denge
- vijay

shyam gupta said...

उपरोक्त श्लोकों में श्री क्रष्ण द्वारा मधु दानव को मारे जाने का कहीं शब्दार्थे मुझे नही मिल रहा । जहां तक मेरा विचार व जानकारी है, मधु दानव का संहार श्री राम के भाई शत्रुघ्न ने किया था व मथुरा को स्वतन्त्र किया था ।